देखने दो तुम
                                          ग़ज़ल   देखने दो तुम गुजरे कल की कुछ  तस्वीरें  बच्चों को.   लिखने दो अपने लफ्जों में फिर तफ़सीरे बच्चों को.     सुन लेना संजीदा होके कल शव देखे ख्वाबों को .   लेकिन मत बतलाना उनकी तुम ताबीरें बच्चो को.     दादा परदादा के कच्चे चिट्ठे जिनमें लिक्खे हो.   हरगिज़ मत पढ़ने देना तुम वह तहरीरें बच्चो को.     आज यह कैसा रोना धोना यह कैसा पछतावा है.   छीन के कलम किताबे तुमने दी शमशीरें बच्चों को.     कैदे कफ़स में जिनको पहनकर तुमने उम्र गंवाई है.   कभी विरासत में मत देना वह जंजीरें बच्चों को.