स्मृतियों के तट,
जिंदगी येसी बिखरी , अपनों से मिलकर बिछड़ी । ना आते कदमों की चाप, ना जाते पैरों की छाप । निःशब्द, नि:चेष्ट पड़ा हूँ । आज भी कल की तरफ मुह किये खडा हूँ। अँधेरे में आँखे फाड़े , रेत में जाल डाले, विगत को छानता हूँ, आगत को भापता हूँ । बालू, वराटिका, सीपी, शंख , ...