स्मृतियों के तट,
जिंदगी येसी बिखरी ,
अपनों से मिलकर बिछड़ी ।
ना आते कदमों की चाप,
ना जाते पैरों की छाप ।
निःशब्द, नि:चेष्ट पड़ा हूँ ।
आज भी कल की तरफ मुह किये खडा हूँ।
अँधेरे में आँखे फाड़े , रेत में जाल डाले,
विगत को छानता हूँ,
आगत को भापता हूँ ।
बालू, वराटिका, सीपी, शंख ,
अगणित सागर में पड़े हुए है,
हम स्मृतियों के तट पर ,
टकटकी लगाये खड़े हुए है ।
लोगो ने शंख उधार दिए ,
तो मैंने भी सीपी बांटे है ।
हमने तो मोती उपजाए,
अब तक खेतो में उनके,फिर भी उनके गुलदस्तों से,
हरदम काँटे ही पड़े हुए है ।
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