अन्ना आन्दोलन की आवाज बन गए
५ अप्रैल ११ अन्ना आंदोलन के लिए एक खास दिन है। आज से एक साल पूर्व एक 74 साल के बुजुर्ग के आवाज पर देश जाग उठा था भ्रष्टाचार के खिलाफ. अन्ना आन्दोलन की आवाज बन गए .
2011 को याद रखा जाएगा, भारत में जन आन्दोलन के लिए तथा शासन के षड्यंत्र के लिए. देश के आम आदमी, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो मध्यमार्गी है अपनी ही दुनिया में मस्त और व्यस्त रहता है। कोई उम्मीद भी नहीं सकता था कि यही भारतीय आम आदमी व्यवस्था में पसरी भ्रष्टाचार को समूल समाप्त करने के लिए सड़क से संसद को सन्देश दे सकेगा . क्योकि आज से पहले उसे अपनी स्वयं की क्षमता पर विश्वास नहीं दिख पा रहा था . आम आदमी को उसकी ताकत का अहसास दिलाया एक 74 साल के नौजवान बुजुर्ग अन्ना हजारे ने। अन्ना हजारे की राह पकड़कर आम आदमी ने ऐसा तूफान खड़ा किया कि बहरी सत्ता को बार-बार सुनना पड़ा। लेकिन वो सरकार ही क्या, जो आसानी से आम आदमी की बात सुने, इसलिए ये लड़ाई अभी भी जारी है। .
5 अप्रैल 2011 के पहले देश के ज्यादातर लोग ना तो लोकपाल के बारे में ज्यादा जानते थे और ना ही अन्ना की व्यक्तित्व के बारे में, लेकिन एक साल के अंदर अन्ना ने एक नई इबारत लिख दी। देश के युवाओं को ये सपना भी दिखाया कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है। एक साल में कई तरह के बदलाव देखे गए. न केवल अन्ना और उनकी टीम को कई मुश्किलों से गुजरना पड़ा बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाने वाले सभी आवाजों को कुचलने और दबाने की भरपूर कशिश की गयी .
लगता है तमाम आरोपों विरोधों को झेलते हुए टीम एक बार फिर नई ऊर्जा के साथ लड़ने के लिए तैयार हो गई। अब लड़ाई केवल लोकपाल की नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की है।
अन्ना हजारे को 5 अप्रैल 2011 तक महाराष्ट्र में ही समाजसेवा के काम के लिए जाना जाता था। लेकिन इस दिन के बाद देश के कोने कोने में मैं हूं अन्ना की टोपी पहने लोग सड़कों पर निकल आए।
सरकार अन्ना हजारे को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही थी। हालांकि अन्ना ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार मजबूत लोकपाल बिल नहीं लेकर आई, तो वे 5 अप्रैल से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ जाएंगे। लेकिन सरकार के कानों पर जू नहीं रेंगी। शायद सरकार अन्ना के अनशन, सच्चाई और त्याग की ताकत का अंदाजा नहीं लगा पाई। अन्ना का अनशन शुरू हुआ और देखते ही देखते ही लोगों की भारी भीड़ जुटनी शुरू हो गई। हर घंटे, हर दिन लोगों का हुजूम बढ़ता चला गया। आखिरकार 98 घंटे बाद अन्ना के सामने सरकार झुकती हुई नजर आई। तब तक अन्ना हजारे देश भर में भ्रष्टाचार के विरोध का प्रतीक बन गए थे। अन्ना को आश्वासन दिया गया कि एक संयुक्त समिति बनाई गयी. मनमोहन सिंह सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री प्रणब मुखर्जी इस कमेटी के अध्यक्ष थे, तो अन्ना की मांग पर, सरकार को इस कमेटी के सहअध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ वकील और अन्ना के करीबी सहयोगी शांतिभूषण को नियुक्त करना पड़ा। लेकिन सरकार ने एक बार फिर अन्ना को धोखा दिया। शायद अन्ना को सरकार की नीयत पर पहले से ही शक था। 16 अगस्त आते आते ये साफ हो गया था कि सरकार की नीयत मजबूत लोकपाल बिल लाने की नहीं है। 15 अगस्त शाम को अन्ना अचानक राजघाट जा पहुंचे। पूरा राजघाट लोगों की भीड़ से भर गया। 16 अगस्त को पुलिस ने सुबह सुबह ही फ्लैट से हिरासत में ले लिया। लोगों को लगा कि एक बुजुर्ग उनके लिए लड़ रहा है। एक ऐसा बुजुर्ग, जिसके पास अपना कुछ नहीं हैं, जो मंदिर में रहता है, जिसके लिए देशवासी ही परिवार के सदस्य हैं। इधर पुलिस ने अन्ना और उनकी टीम को हिरासत में लिया, उधर देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गए। अन्ना को उनके फ्लैट से ले जाने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी। वो आम आदमी जिसके बारे में कहा जाता था कि वो आंदोलन की राह से दूर हो गया है और वो अपने घर से बाहर नहीं निकलता। वो आम आदमी अन्ना के साथ जेल जाने को तैयार था। क्या महिला, क्या पुरुष, क्या बुजुर्ग, सभी जेल जाने को तैयार थे। शाम होते-होते सरकार और पुलिस के हाथ पैर फूल गए। अन्ना हजारे को आनन-फानन में जेल से छोड़ने का फैसला किया गया। लेकिन अन्ना हजारे ने साफ कर दिया कि जब तक उन्हें बिना शर्त अनशन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, वो जेल से बाहर नहीं जाएंगे और जेल में ही उनका अनशन जारी रहेगा। अब तक तिहाड़ जेल के बाहर लोगों की भारी भीड़ जुट गई थी। बहरहाल 3 दिनों के बाद अन्ना को रामलीला मैदान में अनशन करने की अनुमति मिली।
रामलीला मैदान में 13 दिन तक अन्ना का अनशन चला। ये 13 दिन मामूली नहीं थे। देश के नक्शे पर नई इबारत नजर आ रही थी। एक ऐसी इबारत, जिसे सड़कों पर आम लोगों ने लिखा था। ये अन्ना का जादू था। इस अनशन ने देश की सरकार को ये दिखा दिया था कि आम आदमी की ताकत सबसे बड़ी है। अन्ना ने आम आदमी को उसकी इसी ताकत का अहसास करा दिया था। देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सदन में कहा कि अन्ना हजारे की तीन मांगों को मानने के लिए पूरी संसद में सहमति है। इस तीन मांगों में राज्यों में लोकायुक्त, सिटिजन चार्टर और निचली अफसरशाही को लोकपाल के दायरे में लाना शामिल था। टीम अन्ना को भी लगा कि अगर निचली अफसरशाही लोकपाल के दायरे में आ जाएगी, तो लोगों को बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी। लेकिन सरकार ने वही किया जिसकी आशंका थी। देश को अब तक लोकपाल नहीं मिला है। पर वह बुजुर्ग अभी भी नवजवान है. उससे भी बड़ी बात देश नवजवान है और नौजवान जाग चूका है . भले ही मुंबई की तरह लोग सडकों पर एक आध बार न उतरे पर पोलिंग बूथ जरूर जायेंगे और अपनी मंशा अपना गुस्सा बैलेट से जताएंगे . न किसी युवराज न किसी राजकुमारी और न ही किसी महारानी की शाही चमक से चौधियायेंगे. इतना ही नहीं उत्तराखंड के लोंगो ने तो यह भी दिखा दिया की भ्रष्टाचार पर लीपापोती या कास्मेटिक सर्जरी से काम नहीं चलेगा. जो सबसे ज्यादा अन्ना के खिलाफ मुखर थे वे बिखर भी गए. सलमान खुर्शीद, सोनिया, राहुल, बेनी प्रसाद वर्मा पी एल पुनिया जगदम्बिका पाल अपनों को जीता नहीं पूरा क्षेत्र ही साफ़ हो गया . अभी घमंड सर चढ़ कर बोल रहा . वक्त सबसे बड़ा शिक्षक होता है . २०१४ से पहले ज्ञान हो जाय यही उम्मीद कर सकते है.
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