सत्ता की सहूलियत या CBI वाली धर्म निरपेक्षता ?
आज कल भारतीय राजनैतिक वीथिकाओं में चीख पुकार मची हुयी है कि संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था
और राजनैतिक जन- प्रतिनिधियों पर से जनता का विश्वास उठता जा रहा है, इसके लिए कुछ सिविल सोसायटी और उसके तथाकथित फांसीवादी नेत्रित्व के भड़काने की वज़ह से हो रहा है। हमारे नेता काफी साहसी और सत्यभाषी है इसका उदहारण की वे किसी का नाम लेने से भी परहेज नहीं करते भले ही खुद का नाम आने पर विशेषाधिकार हनन की दुहाई देते हुए विलाप करते नहीं थकते . परन्तु साधारण तौर पर जो जन धरना बन रही है उसके अनुसार " राजनेताओं पर से जनता के उठते भरोसे का कारण अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल या रामदेव नहीं बल्कि वे राजनेता खुद ही है जो जनता की भलाई के नाम पर धरना , बंद और आन्दोलन का ड्रामा करते है . 1977 और 1989 से सत्ता स्वार्थ के लिए कांग्रेस विरोध का नर लगाकर, वामदलों के साथ जनसंघ / भाजपा के कंधे पर सवार इसी मुलायम ने प्रदेश और केंद्र में कुर्सी का मज़ा लिया था। मायावती भी इसी सांप्रदायिक ताकत / भाजपा की सहायता से सत्ता सुख भोग चुकी है।क्या तब माया मुलायम को सांप्रदायिक ताकतों को रोकने और अल्पसंख्यकों का ख्याल नहीं आया था। क्या तब भाजपा सांप्रदायिक नहीं थी? मुस्लिम भावनाओं को पैरों तले रौंद कर कल्याण सिंह और साक्षी महाराज को सम्मानित व सम्मिलित किया गया। क्या अल्पसंख्यको की भवनाओं का निरादर था उनके साथ विश्वास घात नहीं था?कल जब देश में नुक्लियर डील हो रहा था सवाल देश का था न की भाजपा तब आपने देश के बदले कथित इस्लाम विरोधी अमेरिका का साथ क्यों दिया ? देश के साथ मुस्लिम समुदाय भी अचंभित है। यही स्थिति तब थी जब FDI लाकर कांग्रेस देश को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विदेशी हाथों में गिरवी रखने का प्रयास कर रही थी तो माया मुलायम ने सिद्धांततः विरोधी होते हुए भी इसका समर्थन किया क्यों ?जनता को लूटा जा रहा है लोकतंत्र को कुचला जा रहा है। बाहर लम्बे लम्बे भाषण से विरोध और सदन में साथ क्यों? क्या देश की जनता इतनी भोली औए मासूम है की उसे जब चाहे तब, जो भी नेता चाहे मूर्ख समझने लगे? क्या हम आसानी से नहीं समझ सकते की इन दोनों की वास्तविक विवशता झूठी धर्म निरपेक्षता से ज्यादा CBI का शिकंजा है . सिर्फ मुसलमानों के नाम पर पूरे 121 करोड़ हिंन्दू , मुसलमान सिक्ख ईसाई के खिलाफ महंगाई, लूट, भ्रष्टाचार , पेट्रोल , सिलेंडर , डीजल और FDI का समर्थन किया . मुझे लगता है इन दोनों को अब CBI के साथ जनता के चार्ज शीट के लिए तैयार रहना चाहिए।धर्मनिरपेक्षता की (थोथी) ठेकेदारी मुलायम, माया, कांग्रेस या वाम दलों की ही नहीं है। क्योकि धर्म निरपेक्षता और जनहित दोनों की मिसाल ममता बनर्जी ने दिखा दिया . कम से कम उत्तर प्रदेश की जनता निश्चित रूप से माया, मुलायम से सवाल करेगी। CWG, 2G , आदर्श , coal -gate , Nuclear Deal ,
डीज़ल, LPG , FDI जैसे जनविरोधी प्रश्नों के बाद भी क्या मज़बूरी है? -----मौसेरे भाईयों का गठजोड़ या CBI , के पास काले कर्मों की बही-खाता?
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