निश्चय ही
निश्चय ही....
निश्चय ही......
तुम कभी तो मुझको .....याद करते होगे...
दो लम्हें तो मेरे लिए.....बर्बाद करते होगे
जब पगडंडियों से होकर, शाम उतरती होगी...
पकड़ कर डंडी, रात छत पर चढ़ती होगी..
तुम रात भर चांद से ,मेरी बात तो करते होगे ...
बात करते-करते रात से ,प्रभात तो करते होगे..
कभी पड़े मिलते होंगे , मेरे कहे अनकहे शब्द ...
अनायास ही तुम,हो जाते होगे निशब्द .,
दो घड़ी को मेरे लिए,उपलब्ध तो होते होगे..
दूर कहीं शून्य में जाकर ,मन तो खोते होगे...
तुम कभी तो मुझको .....याद करते होगे...
दो लम्हें तो मेरे लिए.....बर्बाद करते होगे।।
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डॉ यू पी सिंह
05.02.2021
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