आजाद या गुलाम

















आज फिर मन मेरा
गुलामी की चाहत लिए
वो गुलामी, बिलकुल वाही गुलामी
जिसको एक महात्मा ने तोड़ा था.

क्योकि आज आजादी की कीमत
शायद मेरे दिलो दिमाग में
गिर गयी बुझ सी गयी
सच्चाई को मैंने आज
राजघाट पर रोते पाया
कल जब हथियारों को
खुली सड़क पर बिकता देखा
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों से
रक्तिम सरिता बहते देखा.

इसी लिए फिर मेरा मन
गुलामी की चाहत लिए
एक महात्मा को ढूढता है.

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