चुनाव परिणाम - राजनैतिक दलों का दर्पण
विजेताओं का राजतिलक और पराभूतों को सांत्वना हमारी सांस्कृतिक परम्परा रही है वैसी ही परम्परा जीत को नम्रता से तथा हार को सहर्षता से स्वीकारने की रही है . समाजवादी पार्टी के अतीत का चरित्र जो भी रहा हो परन्तु अखिलेश यादव ने विजय को जिस शालीनता से स्वीकार किया उसमें राजनीति में युवा भविष्य की सकारात्मकता का काफी सशक्त और संवेदनशील चेहरा दिखाई देता है . जनांदोलनो को कांग्रेस की अल्पमत की सरकार ने जिस दम्भ और क्रूरता से दमित किया, तंत्र से जन को मिटाने का प्रयास किया और बार बार हक के प्रतिवाद में चुनाव जितने की चुनौती दिया . इसी अहंकार ने जनता के कपीश ( हनुमान ) बल को जगा दिया . विजय पाना बहुत बड़ी सफलता तो है लेकिन जनता ने जिन उपेक्षाओं को नकार कर दिया, विजेताओं को जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना उससे बड़ी चुनौती है . इन परिणामो पर सभी राज नैतिक दलों व नेताओ को विचार करने की जरूरत है खास कर कांग्रेस और बी जे पी को. देश जग रहा है आगे बढ़ रहा है प्रौढ़ हो रहा है. अब आप कांटे से कांटा नही निकल सकते. दूसरो के कुकृत्य से अपनी कालिमा ढकने का प्रयास बेमानी हो गया है. सलमान खुर्शीद एक बानगी है, २०१४ में कई खुर्शिदो और सिब्बलो का हिसाब होना बाकी है. विजेताओं को बधाई तथा परभूतो को आगे के शुभेच्छा. अगर इमानदार बदलाव की इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं हासिल हो सकता है. हमारे यहाँ बुजुर्गो में देवत्व का बिम्ब देखा जाता . ७४ साल के निष्काम योगी अन्ना हजारे को प्रताड़ित और अपमानित नही करना चाहिए था जनता ने इस तरह की पीड़ा का अहसास तो नही किया ?
इन परिणामो का विश्लेषण इस तरह से सर्वथा नही किया जा सकता कि पराजित सर्वथा भ्रष्ट तथा विजेता पूर्णतः इमानदार है. मुझे लगता है पूरा राष्ट्र इस कालखंड में सबसे ज्यादा तड़ित और शिकार भ्रष्टाचार से है .उत्तर प्रदेश में यैसे भी विधायक है जिनकी ५ साल पूर्व कुल चल अचल सम्पति ५ लाख थी और कार्यकाल के अंत तक सवा करोड़ ( १ करोड़ २५ लाख ) यानि कि २५ लाख वार्षिक लगभग २ + लाख मासिक सिर्फ बचत ही बचत खुद का खर्च, २ बच्चे अच्छे संस्थानों में, परिवार रिश्तेदार सबको खुशहाल और मालामाल करने में कुल मिलाकर दशों लाख कि मासिक आय . कैसे ?? अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं. भ्रष्टाचार सिर्फ बीमारी नहीं सिंड्रोम है. जिसके कारण महंगाई भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, असंतोष तथ अपराध पनपते है. ५ राज्यों के चुनाव परिणाम तो एक लक्षण मात्र है, आगत कि आहट है. भूख हर पाप के मूल में होता है , हमारा देश खुश किश्मत है कि यहाँ गरीबी भूखमरी बेबसी लाचारी आत्महंता है हत्यारी नही वरना कल्पना में ही अगर सीरिया ग्रीस मिस्र सोमालिया आने लगे तो ?? आंधी में विवेक नहीं होता सिर्फ एक धर्म होता सबका समूल नाश . जिस दिन जनक्रोश का चक्रवात या विप्लव उठ खड़ा होगा उस दिन बिना स्केल लगाये . कम भ्रष्ट या ज्यादा भ्रष्ट का गुणा गणित किये बिना. व्यवस्था का जर्जर भवन ध्वस्त हो जायेगा . इसकी जिम्मेदारी सभी राजनैतिक दलों की होगी . २-४ वोट ज्यादा पा जाने से कोई दल इमानदार नहीं हो जाता . लोग आशावादी है अंधे नहीं. नेताओं को नही भुलाना चाहिए.
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