कैसे गीत मिलन के गाऊ,
कैसे गीत मिलन के गाऊ,
कैसे निज मन को बहलाऊ.
विरही विकल तरंगे जल की ,
सागर का श्रृंगार न समझो .
मेघ पवन की मजबूरी को ,
अम्बर का खिलवाड़ न समझो.
कैसे पपीहा को समझाऊ,
कैसे स्वाति को बरसाऊ .
भाव व्यथित उद्गार ह्रदय की ,
कवि मन का व्यवसाय न समझो.
ओंस जड़ित पुष्प पंखडियो को ,
मुक्ता का उपहार न समझो .
कैसे खंडित भाव जुटाऊ,
कैसे नेत्रों को भरमाऊ.
कैसे गीत मिलन के गाऊ,
कैसे निज मन को बहलाऊ.
उत्तम १२.५.१९९४
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