मन मीत मिलन को तड़पे
मुरतियाँ फिर फिर संवर न पाए
सुरतियाँ उभर उभर दब जाये ,
मन मीत मिलन को तड़पे
तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय .
बीते रीते काल पथों पर
चलते चलते मिला - एक दिन,
वही आइना
जिसमे निरखे तुने स्निग्ध कपोलो की लाली
गेसुओं के हुश्न निखरे.
नदियाँ तब से ठहर न पाए
लहरियां तड़प तड़प बलखाये
मन मीत मिलन को तड़पे
तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय.
बांगो की उड़ती सुरभि
छिटकी गंध मल्लिका - जूही की,
झुककर हाथ बढ़ाया चेतना विलुप्त हुई
स्वप्न निषेचित आशाओ का
त्वरित गर्भपात हुआ .
क्यों समृद्ध जग न हो पाए
दिल बगियाँ क्यों महक न पाए
मन मीत मिलन को तड़पे
तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय .
राते सिकुड़ी गह्वर तम में
फैली फिर अब चांदनी
ठहर कर दंभ दिखाते , मुस्काते
गाते तारक गण दे ताल
मूर्छित है मेरा विश्वास
कहाँ है सोया अरुण प्रभात.
तेरी राह न अब हम पाए
चंदा फिर भी न शर्माए .
मन मीत मिलन को तड़पे
तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय .
उत्तम १८.९.९३
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