नववर्ष -समर्पण
दो फूल नहीं दो वृक्ष नहीं, कुछ पत्तों का संजोग नहीं ,
दो दिल की धड़कन एक बने, दो धार मिले एक नदी बने .
सुनहरी भोर पूरब की, तुम्हारे होंठो से बिहँसे ,
धरा प्यार से रोशन हो, रसना से हरदम मधु बरसे .
चौखट की औकात किसी क्या, रोक सके जो रह स्वर्ग का .
हर कोई तेरे छवि को निरखे , हर कोई तुमसे प्यार करे ,
कोई तुमको जुदा न समझे , खिले चमन और शाख हरे .द्वारे कड़ी नई साल है, लेकर चन्दन पूजा थाली.
चैट सुहानी माघ सुहानी, शिशिर और बरसात सुहानी.
उत्तम २.१.९०
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