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शब्द मेरे मौन से क्यों है.

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विश्व का विन्यास खोकर ,                  शब्द मेरे मौन से  क्यों है. प्रीत का परवान होकर                   स्वप्न मेरे व्योम से क्यों. नीड़ बिन,  उजड़े चमन में,                  मधुप की चंचल उमंगे. तृप्ति सागर नेह जल में,                  सो गई तन की तरंगे . ताज के स्वर्णिम चमक में,                  चीखते है आह जग के कल्पना  के  इन्द्रधनु  में,                   भीगते है घाव  मन के. यूँ  ना हंसकर रोकिये ,                   मेरी मंजिल  का सफर . मेघ  मन से अब हटा है,                    दूर  दिखती एक किरन . पी नही  सकता हलाहल,                   शिव  की कोई  चाह नही. हृदय  हीन हो चुका कभी का,                    दृष्टी  बची पर  आँख  नही.                                              उत्तम २२.१०.९५

वोट की शक्ति

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                           छोटे मोटे लोग आपके ऊपर अधिकार किये बैठे है.  इन्हें उतर फेंको . आपका देश अभी भी बुद्धिमानो से खाली नहीं है. लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति चुनावो में भीखमंगो की तरह तुम्हारे पास वोट मांगने नहीं आएंगे. जो आपके पास वोट मांगने आये उसे वोट मत देना , बल्कि जिसे वोट लेने के योग्य समझो उसके पैर पड़ना उसे समझाना बुझाना मानना कि आप  खड़े हो जाओ हम आप को वोट देना चाहते है .  सम्भव है कि तलाश  कठिन  हो  पर  असली  प्रतिनिधि  वही  होगा . जो वोटो कि भीख मांगता है वह  निहित स्वार्थी  है अवसरवादी  है उसकी न लोक में आस्था है न तंत्र पर  विश्वास . उसके पास नैतिक मूल्यों और चारित्रिक बल का सवर्था आभाव है. उसके मत देना अपने मतों को कि कीमत  दो कौड़ी  का कर देना होगा.    

बसंतोत्सव - फागुनी दोहे

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बसंतोत्सव  -  फागुनी दोहे और ---- हरियाली करने चली फागुन का संधान , पीताम्बर सौरभ सजा बरबस खींचे ध्यान . होंठो पर टेंसू खिले आँखों में कांचनार, युगल कमल आगोश में घेरा हुआ लाचार, आती जाती ही रही सर्दी बारम्बार , पीछा महबूबा करे जैसे हत्थीमार . बौराई अमरायिया सुन कोयल की कूक, बोले पपीहा पी कहाँ अंगड़ाई ले हूक. पंख दुलती तितलियाँ गंध लुटाते फूल, ऋषियों के औलाद  ऐ भौरे जाते भूल. सुरभि परी चंचल बड़ी सुषमा सखिक हाथ, जग को मतवाली करें थाम पवन के हाथ.                                         उत्तम १७.३.९२

बसंतोत्सव - और फागुनी दोहे

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   नयन मछेरन बन गये फेंक रूप का जाल अबके फागुन में तेरा गाल करेंगे लाल . मस्त मंजरी बौर से भरे आम के पेंड़ संयम बहता तोड़ कर प्रतिबंधो का मेड़. मन की सुधि का दीप है तन टेंसू का फूल फागुन में नैना करे बार बार क्यों भूल . प्रीतम की सुधि आ गई बज़ी झांझ और चंग  गोरी अलसाई खड़ी टूट रहा सब अंग . दूर कहीं चौपाल में चहका और कबीर  प्रीतम है परदेसियाँ मन हो गया अधीर . बुढाऊ भी देवर लगे जब जब आये फाग बिन दांतों के गा रहे भीम पलासी राग . रोष भरा संकोच है लेकिन मन मनुहार फागुन में ढहने लगी संयम की दीवार.                                              उत्तम १७.३. ९२

मैं ऐसा कोई ख़्वाब नहीं कि ------

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मैं ऐसा कोई ख़्वाब नहीं कि ------ खुली नज़र से बँधी अलक को मत झटको बंद अँगुलियों से मत सोई आँख मलो.                                मैं ऐसा कोई ख़्वाब नहीं कि                                 तू जगकर जिसको याद करे . बिखरी घड़ियाँ युग्म मिलन को प्यासी. बीते दिन का रूककर मत फरियाद करो.                                 मैं ऐसा बुत ताज नहीं, कि                                   अपने में मुझको तुम ले लो.     अली अभिशापित हो अच्छा लगता है, एक पांव पर पपीहे को मत खड़ा करो.                                    मैं ऐसा स्वर्ण पात्र नहीं, कि                                    अपने अधरों का रस घोलो. उपवन उजड़ेगी सौन्दर्य नहीं साश्वत सुंदरी , मेरे निर्मल कुटिया पर मन मत मलिन करों .                                  मैं ऐसा पुष्पहार नहीं, कि                                     कंटक वन से तुम खेलो. तेरी बेसुध किलकारी से फटता जाता दिल बिरही , अश्रु दरिया उमड़ चली है सावन कि मत चाह करो.                                    मै ऐसी बरसात नही

नववर्ष -समर्पण

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  दो फूल नहीं दो  वृक्ष नहीं, कुछ पत्तों का संजोग  नहीं , दो दिल की धड़कन एक बने, दो  धार  मिले एक नदी बने . सुनहरी भोर पूरब की, तुम्हारे होंठो से बिहँसे , धरा प्यार से रोशन हो, रसना से हरदम मधु बरसे . धरती समझे धन्य स्वयं को , सुन तेरे कर्मो की पायल , चौखट की औकात किसी क्या, रोक सके जो रह स्वर्ग का . हर कोई तेरे छवि को निरखे , हर कोई तुमसे प्यार करे , कोई तुमको जुदा न समझे , खिले चमन और शाख  हरे . नई जिंदगी नई उमंगें , नए साल की नई कहानी , द्वारे कड़ी नई साल है, लेकर चन्दन पूजा थाली. प्रातः सुहानी शाम सुहानी, नूतन वर्ष दिन रत सुहानी, चैट सुहानी माघ सुहानी, शिशिर और बरसात सुहानी.                                                                        उत्तम २.१.९०                        

पूरी जिम्मेदारी डॉ मनमोहन सिंह और चिदंबरम की

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            कोर्ट ने शायद साक्ष्यो को पर्याप्त  न माना  हो डॉ सुब्रमण्यम स्वामी  सबूत न प्रस्तुत कर  सके हो . विधिक  प्रक्रिया में चिदंबरम  भले ही लाभ पाते दिखाते हो  लेकिन यह तो तय है की  घोटाला  तो  हुआ है . इसकी  पूरी  जिम्मेदारी   डॉ मनमोहन सिंह और चिदंबरम की है अतः इन्हें जाना ही चाहिए .  इस राष्ट्र के गरीबो   , मजदूरो  , बेकारो  , नौजवानो ,  किसानो   के  खूने  पसीने का १,७६,००० करोड़ लूट लिए गया . जिस  ईमानदार प्रधानमंत्री और काबिल वित्त मंत्री के हाथो में हमने राष्ट्र के  सम्मान और संपदा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौपी थी  उसे बचा पाने में असफल  रहे   .   जाँच के  बाद  कुछ  भी  आये पर  रूपया तो गया अतः प्राकृतिक न्याय के अनुसार आपने लूटा या लुटते हुए देखते रहे मतलब लूट के हमराज है.    इनसे  नैतिकता  की अपेक्षा  करना अपने आप  को भुलावा देना है,  क्योकि  इन्हें  इस  बात दंभ है  की इन्हें  २००९  में  जनादेश मिला है तो इन्हें हर जायज नाजाजय कर्म कुकर्म करने का हक मिल गया है . १२२ कंपनियों के लाइसेंस को रद्द कर सर्वोच्च न्यायलय ने सीधे सीधे  पोलिसी तथा f

मन मीत मिलन को तड़पे

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मुरतियाँ फिर फिर संवर न पाए सुरतियाँ उभर उभर दब जाये ,                मन मीत मिलन को तड़पे               तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय . बीते रीते काल पथों पर चलते चलते मिला - एक दिन, वही  आइना जिसमे निरखे तुने स्निग्ध कपोलो की लाली गेसुओं के हुश्न निखरे.  नदियाँ तब से ठहर न पाए  लहरियां तड़प तड़प बलखाये                मन मीत मिलन को तड़पे                    तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय. बांगो की उड़ती सुरभि छिटकी गंध मल्लिका - जूही की, झुककर हाथ बढ़ाया चेतना विलुप्त हुई स्वप्न निषेचित आशाओ का त्वरित गर्भपात हुआ . क्यों समृद्ध जग न हो पाए दिल बगियाँ  क्यों महक न पाए                 मन मीत मिलन को तड़पे                 तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय . राते  सिकुड़ी गह्वर तम में फैली फिर अब चांदनी ठहर कर दंभ दिखाते , मुस्काते गाते तारक गण दे ताल मूर्छित है मेरा विश्वास कहाँ है सोया अरुण प्रभात. तेरी राह न अब हम पाए  चंदा फिर भी न शर्माए .                   मन मीत मिलन को तड़पे                    तुम्ह

नागफनी

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नागफनी चलते  धरती पर खोजे थे चिन्ह क़यामत के पांवो की , सब कुछ बिसरा बिसरा दिखता झाड़ बचे थे नागफनी के .                  हर पल विहँसे खिलकर महके                    ना डर ना परवाह खिंजा की ,                    पुरवाई की  राह  न देखे                     शांखे गुलिस्ताँ नागफनी की . दरिया चाहे विद्रुम मुक्ता कमल कुमुदिनी ताल को प्यारी ठुकराए जब शस्य श्यामला , बनती सिक्ता, जननी नागफनी की .                रत्न जड़ित पारितोषिक जग की                  दुनिया ने सर आँख लगाईं ,                   मेरे छोटी सी नगरी की                   चाह  चमन बस नागफनी की .                                                              उत्तम; १४.८.93