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मन मीत मिलन को तड़पे

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मुरतियाँ फिर फिर संवर न पाए सुरतियाँ उभर उभर दब जाये ,                मन मीत मिलन को तड़पे               तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय . बीते रीते काल पथों पर चलते चलते मिला - एक दिन, वही  आइना जिसमे निरखे तुने स्निग्ध कपोलो की लाली गेसुओं के हुश्न निखरे.  नदियाँ तब से ठहर न पाए  लहरियां तड़प तड़प बलखाये                मन मीत मिलन को तड़पे                    तुम्हे अब कैसे ढूँढू हाय. बांगो की उड़ती सुरभि छिटकी गंध मल्लिका - जूही की, झुककर हाथ बढ़ाया चेतना विलुप्त हुई स्वप्न निषेचित आशाओ का त्वरित गर्भपात हुआ . क्यों समृद्ध जग न हो पाए दिल बगियाँ  क्यों महक न पाए   ...