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कुछ लिखो तो सही...

थोड़ा ही लिखो पर कुछ लिखो तो सही अपनी ही कविता में खुद दिखो तो सही, व्याकरण, विन्यास, शब्द भले न हो पर अपने मंच पर टिको तो सही। किताबी पन्नों में छपे भले ही न हो पर अपनी कीमत पर बिको तो सही सब कुछ तुम्हारे मन का भले ही न हो, पर कुछ तो अपने दिल की कहो तो सही। ! डॉ यू पी सिंह 16.02.2021

निश्चय ही

निश्चय ही.... निश्चय ही...... तुम कभी तो मुझको .....याद करते होगे... दो  लम्हें तो मेरे लिए.....बर्बाद करते होगे  जब पगडंडियों से होकर, शाम उतरती होगी...  पकड़ कर डंडी, रात छत पर चढ़ती होगी..  तुम रात भर चांद से ,मेरी बात तो करते होगे ... बात करते-करते रात से ,प्रभात तो करते होगे.. कभी पड़े मिलते होंगे , मेरे कहे अनकहे शब्द ... अनायास ही  तुम,हो जाते होगे निशब्द ., दो घड़ी को मेरे लिए,उपलब्ध तो होते होगे..  दूर कहीं शून्य में जाकर ,मन तो खोते होगे... तुम कभी तो मुझको .....याद करते होगे... दो  लम्हें तो मेरे लिए.....बर्बाद करते होगे।। ! डॉ यू पी सिंह 05.02.2021