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असत्य से मुंह छुपाता सत्य

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सत्य बोलने के लिए दो लोग चाहिए होते हैं:  एक वह जिसके अंदर सच बोलने का साहस हो और दूसरा जिसके अंदर सच सुनने की सहनशक्ति।  • आजकल सत्य इसीलिए लुप्त होता जा रहा है। वह सहिष्णुता नदारद हो गयी है जो सच सुन सके, विशेषकर वह सच जो अनुकूल न हो। वह जमाना, वे लोग, वह संस्कृति कब का चला गया, जो आंगन के निंदक के लिए कुटिया बनाता था। अब तो सच बोलना तो दूर बोलना भी है गुनाह। कुछ इस तरह जैसा दुष्यंत कुमार ने महसूस किया था।  मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं, बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार। आप ढूंढते रहिए सच बोलने वालों को, वह शख्स शायद मिल भी जाय लेकिन सच बोलते हुए नही मिलेगा, इसलिए नही कि उसके पास बोलने के लिए सच नही है। आज भी सच बोलने की इच्छा सबको है परन्तु सच को सुनने वाले नही रहे, सच सहने वाले नही हैं। जो सच किरदार को इनाम का हकदार बनाता था, आज वही दया का पात्र बना देता है। सच की तासीर तो फायदेमंद हो सकता है पर ज़ायका बहुत कड़वा होता है, नाक़ाबिले बर्दास्त होता। सत्य की सच्चाई ठीक उसी तरह है कि सब चाहते है भगत सिंह पैदा हो परन्तु पड़ोसियों के घर (कौन अपने बेटे को फांसी पर लटक

कुछ लिखो तो सही...

थोड़ा ही लिखो पर कुछ लिखो तो सही अपनी ही कविता में खुद दिखो तो सही, व्याकरण, विन्यास, शब्द भले न हो पर अपने मंच पर टिको तो सही। किताबी पन्नों में छपे भले ही न हो पर अपनी कीमत पर बिको तो सही सब कुछ तुम्हारे मन का भले ही न हो, पर कुछ तो अपने दिल की कहो तो सही। ! डॉ यू पी सिंह 16.02.2021

निश्चय ही

निश्चय ही.... निश्चय ही...... तुम कभी तो मुझको .....याद करते होगे... दो  लम्हें तो मेरे लिए.....बर्बाद करते होगे  जब पगडंडियों से होकर, शाम उतरती होगी...  पकड़ कर डंडी, रात छत पर चढ़ती होगी..  तुम रात भर चांद से ,मेरी बात तो करते होगे ... बात करते-करते रात से ,प्रभात तो करते होगे.. कभी पड़े मिलते होंगे , मेरे कहे अनकहे शब्द ... अनायास ही  तुम,हो जाते होगे निशब्द ., दो घड़ी को मेरे लिए,उपलब्ध तो होते होगे..  दूर कहीं शून्य में जाकर ,मन तो खोते होगे... तुम कभी तो मुझको .....याद करते होगे... दो  लम्हें तो मेरे लिए.....बर्बाद करते होगे।। ! डॉ यू पी सिंह 05.02.2021