बसंतोत्सव - फागुनी दोहे

बसंतोत्सव - फागुनी दोहे और ---- हरियाली करने चली फागुन का संधान , पीताम्बर सौरभ सजा बरबस खींचे ध्यान . होंठो पर टेंसू खिले आँखों में कांचनार, युगल कमल आगोश में घेरा हुआ लाचार, आती जाती ही रही सर्दी बारम्बार , पीछा महबूबा करे जैसे हत्थीमार . बौराई अमरायिया सुन कोयल की कूक, बोले पपीहा पी कहाँ अंगड़ाई ले हूक. पंख दुलती तितलियाँ गंध लुटाते फूल, ऋषियों के औलाद ऐ भौरे जाते भूल. सुरभि परी चंचल बड़ी सुषमा सखिक हाथ, जग को मतवाली करें थाम पवन के हाथ. उत्तम १७.३.९२