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सत्ता की सहूलियत या CBI वाली धर्म निरपेक्षता ?

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सत्ता की सहूलियत या  CBI वाली  धर्म निरपेक्षता ?  आज कल भारतीय राजनैतिक वीथिकाओं में चीख पुकार मची हुयी है कि  संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था  और राजनैतिक जन- प्रतिनिधियों पर से जनता का विश्वास उठता जा रहा है, इसके लिए कुछ सिविल सोसायटी और उसके तथाकथित फांसीवादी नेत्रित्व के भड़काने की वज़ह से हो रहा है। हमारे नेता काफी साहसी और सत्यभाषी है इसका उदहारण की वे किसी का नाम लेने से भी परहेज नहीं करते भले ही खुद का नाम आने पर विशेषाधिकार हनन की दुहाई देते हुए विलाप करते नहीं थकते . परन्तु साधारण तौर  पर जो जन धरना बन रही है उसके अनुसार " राजनेताओं पर से जनता के उठते भरोसे का कारण  अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल या रामदेव नहीं बल्कि वे राजनेता खुद ही है जो जनता की भलाई के नाम पर धरना , बंद और आन्दोलन का ड्रामा करते है . 1977 और 1989 से सत्ता स्वार्थ के लिए कांग्रेस विरोध का नर लगाकर, वामदलों के साथ जनसंघ / भाजपा  के कंधे पर सवार इसी मुलायम ने प्रदेश और केंद्र में कुर्सी का मज़ा लिया था। मायावती भी इसी सांप्रदायिक ताकत /  भाजपा की सहायता से सत्ता सुख भोग चुकी है।क्या तब

Herbs for Beauty

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           Herbs for Beauty           There are many herbs  which can be used for beauty as single or as combination of many herbs . Herbs washes  the internal impurities and external toxins of our body also provide additional nutrients to our body. Make it glow and shine. Herbs provide  nourishment  from within, leading to internal development. Most popular herbs used as cosmetic or  beauty care are :- Turmeric:  Turmeric is mainly used for: * glowing , bright skin . Turmeric face masks are extensively available in beauty parlors for their skin-friendly treatment that prevents bacterial infection. Turmeric pastes * cure pigmentation , * maintain the pH factor and are constantly applied on the neck, face and over-all body to enhance the complexion and brightness of skin .   Chandan: Chandan can be used internally as well as externally. Internally as podwer, chandan pills and as Chandanasava  which are orally taken.  Externally chandan is applied as oil

फिर भी मिडिया ईमानदार नही रही-------

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फिर भी मिडिया ईमानदार नही रही-------                           लोकतंत्र में मिडिया को चौथा खम्भा माना जाता है, असल में माना क्या जाता है , है ही।मिडिया की आवश्यकता भी इसीलिए है क्योकि इतर तीन  पायें कमज़ोर  होते जा रहे है।आज विधायिका का दिवालियापन किसी से  छुपा  नही है। न्यायपालिका तक हर कोई पहुँच  नही पाता . न्याय के तीन  पीढ़ियों तक की यात्रा वह भी प्रश्न  चिन्हों के साथ मिलेगा भी की नही। इसलिए मिडिया आम आदमी की आवाज का शसक्त मंच होता है। परन्तु  आज कल मिडिया जिस तरह से मामलों का पोस्टमार्टम और ट्रायल करने लगा है कभी कभी प्रतीत होता है  कि  मिडिया पारदर्शी नही पक्ष या पैरवीकार की भूमिका में है। जिस तरह पुलिस पर प्रायोजित मुठभेड़ का आरोप  लगता है कदाचित कुछ वैसा ही मिडिया भी कटघरे में कड़ी हो जाती है।  दुसरे शब्दों में चारण गान करता दिखता  है। सत्ता अथवा धन शक्ति के यश गान में ज्यादातर मिडिया कोरस में स्वर मिला चुके है। विवशता  भी  हो सकती है। प्रसार भारती में सरकारी हस्तक्षेप पर तब के सूचना प्रसारण मंत्री प्रमोद महाजन ने स्पष्ट  कहा था की  " सरकार जब पैसे खर्च 

Ultimatly PM broke his silence ( MAUN ) on coal GATE.

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PM on coal Gate W e have listened the PM's statement carefully and hopefully but nothing hopeful and nothing credible exept a BABU's office note.The explaination given by him is nothing but bunch of excuses and transfer their responsibility upon other constitutional institution. and questioned these bodies.      *    State govt. were oppsing  means the state govt and CM are more powerful, strong and proactive than  Govt. of India , PMO amd PM himself. Have they put gun upon the PM against his will?       *     He blames the democratic process in parliamentary democracy; decision taking process of parliament is very slow even the matter of national interest. By this  Is PM  raising finger upon the parliament's priority, way of functioning and style?     *     The PM's priority was GDP growth shouldn't suffer and law making takes time. If it is correct them PM should produce data of GDP growth due to coal block allocation ? How much coal became mined? How m

अन्ना आंदोलन के बाद उपजा अवसर

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                अन्ना हजारे द्वारा राजनीतिक विकल्प देने की घोषणा की कुछ लोगों ने स्वागत करते हुए उन्हें राजनीतिक सुधार प्रक्रिया  के रूप में देखा, तो कुछ लोग यैसे भी है जो इस कदम को आत्मघाती मानते हैं। लेकिन  टीम अन्ना ने बहुत कुछ हासिल किया है, जिसके लिए वे बधाई  और सम्मान के हकदार हैं। तो  साथ ही बहुत कुछ दाव पर भी लगा दिया है।  संभव है  उनसे भी गलतियां  होगी . जनता का समर्थन मिलना एक बात है और उसे बरकरार रख पाना दूसरी बात। आदर्शवादी होना अच्छी  बात है , लेकिन आपको सौदेबाजी करना भी आना चाहिए।                     सच्चे नेताओं के लिए गलतियां भी सबक होती हैं। यदि अन्ना और उनके सहयोगी इसी सोच व नजरिए के साथ चलते हैं तो आगे भी अपनी छाप छोड़ेंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते तो लड़खड़ा जाएंगे, भले ही उनकी मंशा नेक हो। अलबत्ता टीम अन्ना की नजदीकी अनुपलब्धियों से एक राजनीतिक अवसर पैदा हुआ है। बार-बार अपनी भूमि और भूमिका खो चुकी  भाजपा चाहे तो इसका  सबसे अधिक फायदा उठा सकती है। वैसे लाभ  तो  कांग्रेस भी लाभ ले सकती थी साहसिक कदम उठा कर, कांग्रेस के पास अवसर भी, बहाना भी है अन्ना को 

अन्ना पर सवाल किस हद तक ?

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अन्ना पर सवाल किस हद तक ? समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाये किसी ने मिटाए. किसी ने लिखी आंसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी.              सवाल उठाना अच्छी बात पर सवाल प्रमाणिक हो बहुत अच्छी बात होती . एक बात से पूरा राष्ट्र सहमत है की अन्ना को PT टीचर होना चाहिए . हमने स्कूल में देखा स्पोर्ट मैन्स स्पिरिट , स्वास्थ्य और अनुशासन सिखाने और पालन कराने का दायित्त्व और धर्म उसी टीचर होता है. इस देश में कुछ लोग निरंकुश, बीमार है, स्पोर्ट मैन्स स्पिरिट के विपरीत दम्भी , अहंकारी और विलासी हो गए है . आज वास्तव में अन्ना जैसे चरित्र की जरुरत है. 70 लाख के सौचालय से न वह सोच आ सकता है न वह स्वास्थ्य जो 70 साल की अवस्था में एक चारपाई, एक बिस्तर, एक थाली एक कटोरी और एक गिलास पर जीवन बसर करने से आता है. आज जिसके नियत और नेतृत्व पर हम प्रश्न उठा रहे है. दिग्विजय सिंह ने उन्हें MP में advisar बनाया था . भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया. मुझे लगता है आपकी बातों में दम है संभव है भविष्य में गिनीज बुक वाले स्वयं संज्ञान ले लेंगे.  आज  कांग्रेस और पूरी सिया

क्या अन्ना आंदोलन बीच सड़क पर खड़ा है ?

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क्या अन्ना आंदोलन बीच सड़क पर खड़ा है ?  एक बार सरदार प्रताप सिंह कैरो देवीलाल के साथ दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे थे. एक कुत्ता बीच में आ गया. कुत्ते की मौत हो गई. सरदार कैरो ने थोड़ी दूर जाकर गाड़ी रुकवाई.  देवीलाल जी से  उन्होंने पूछा, बताओ कुत्ता क्यों मरा? का़फी सोचने के बाद देवीलाल ने कहा कि कुत्ते तो मरते रहते हैं, यूं ही मर गया होगा. सरदार प्रताप सिंह कैरो ने फिर पूछा, बताओ कुत्ता क्यों मरा? देवीलाल जी खामोश रहे, फिर कहा कि आप ही बताइये. तब सरदार प्रताप सिंह कैरो ने देवीलाल से कहा कि यह कुत्ता इसलिए मरा, क्योंकि यह फैसला नहीं कर पाया कि सड़क के इस किनारे जाना है या उस किनारे. फैसला न लेने की वजह से वह बीच में खड़ा रह गया. अगर इसने फैसला कर लिया होता तो सड़क के इस किनारे या उस किनारे चला गया होता और बच जाता. फैसला नहीं लेने की वजह से यह कुत्ता मारा गया.          आन्दोलन के पहले से ही स्पष्ट था कि  सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कठोर लोकपाल के पक्ष में  नहीं है  फिर भी अन्ना ने कई चिट्ठियां लिखी . कोई नतीजा नही निकला निकलना भी नही था क्योकि सरकार  अपनी जिद्द पर अड़ी थी

मत करो मेरे लिए ऐसा बंद

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मत करो मेरे लिए ऐसा बंद एक बार फिर भारत बंद है। विचारणीय प्रश्न यह कि "बंद महंगाई के खिलाफ है या महंगाई कि शिकार जनता के खिलाफ"। क्या कोई राजनीतिक पार्टी बंद करा कर अपनी मांग  मनवा पाई है या सचमुच जन सरोकारों से जुड़े मांगो को मनवाना चाहती है?  बंद आम जनता के नाम पर आयोजित किए जाते हैं। पर बंद के दिन जनता पर तिहरी मार पड़ती है। उस दिन काम-काज का नुकसान तो होता ही है, बंद समर्थकों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई का बोझ भी उसके ऊपर पड़ जाता है। और, जिस समस्‍या से निजात दिलाने के लिए बंद किया जाता है, अगले दिन वह समस्‍या भी जस की तस बनी रहती है। इतनी बड़ी संख्या में राजनैतिक दल और राजनेता अगर चाहते है कि आम आदमी को मूलभूत सामग्री और सुविधाएँ सुलभ और सुनिश्चित हो तो उन्हें इस तरह सडक पर उतरकर सार्वजानिक संपत्ति को क्षति पहुचने और सामान्य जन जीवन को बंधक के बदले , संसद और सरकार का घेराव करना चाहिए, मंत्रियों और मंत्रालय के रास्ते रोकने चाहिए , वो भी तब तक जब तक मांगे न मानी जाये.  लोग समय पर दफ्तर नहीं पहुंच सके, दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल सक

देखने दो तुम

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             ग़ज़ल देखने दो तुम गुजरे कल की कुछ  तस्वीरें  बच्चों को. लिखने दो अपने लफ्जों में फिर तफ़सीरे बच्चों को. सुन लेना संजीदा होके कल शव देखे ख्वाबों को . लेकिन मत बतलाना उनकी तुम ताबीरें बच्चो को. दादा परदादा के कच्चे चिट्ठे जिनमें लिक्खे हो. हरगिज़ मत पढ़ने देना तुम वह तहरीरें बच्चो को. आज यह कैसा रोना धोना यह कैसा पछतावा है. छीन के कलम किताबे तुमने दी शमशीरें बच्चों को. कैदे कफ़स में जिनको पहनकर तुमने उम्र गंवाई है. कभी विरासत में मत देना वह जंजीरें बच्चों को.

सत्व समर्पण

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              सत्व समर्पण  विरह क्या सींचा नही था     तिनके तिनके जलते तन         उलट पलट कर रहा सेकता               भावों से भींगे निज मन को। नीरवता बन नागिन डसती थी        यादों   की   धुधली   परछाई              इच्छाधारी नाग सा नाचू                 पर छलने की कला न आई . ताक रहा निस रैन चाँद मैं        दे दे श्राप सदा छिपने की               चाँद मुझे तड़पा तड़पा कर                      बांधा बनता रहा मिलन की. शर्माता सम्पूर्ण जगत है      देख तेरी छलकी गंगोत्री          भिक्षुक मन अब भोज बना है                दिल दीपक में प्रीती की ज्योति .   यू  पी  सिंह  12.10.92  

अच्छा क्रिकेटर अच्छा राजनेता भी साबित होगा ?

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             सांसद सचिन                हमे बेहद अफ़सोस है की सरकार (कांग्रेस) के इस निर्णय से सचिन और राज्यसभा दोनों की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए. उन्हें सोचना चाहिए था कि क्या उस जमात में बैठ कर  कथित   राजनैतिक चरित्र  से अलग पूरे  को अपनी छवि दिखा पाएंगे ?. क्या राज्यसभा में मनोनयन के अपेक्षाओ और उद्देश्यों को सचिन पूरा कर पाएंगे ?  क्या राजसभा क्रिकेट का  पिच है जहा पूरा राष्ट्र तेंडुलकर  जिंदाबाद  बोलेगा तब जब सचिन सोनिया राहुल जिंदाबाद बोल रहा हो ? क्यों आगाज़ बता रहा है अंजाम क्या होगा ?  सचिन न तो राष्ट्रपति से मिलते है न प्रधानमंत्री से.  लगता है सांसद बनाने का  आभार  व्यक्त कर रहे हो.    सचिन अब भी क्रिकेट खेल रहे हैं और व्यस्तता को देखते हुए यह सवाल भी उठ रहा है कि सचिन राज्यसभा को कितना समय दे पाएंगे?                बच्चन परिवार नेहरु के ज़माने से शुभ चिन्तक रहा. राजीव कि शादी में अहम भूमिका निभाया .  पर इस परिवार ने क्या किया इनके साथ. क्वात्रोची (इटैलियन) को बचाया और अमिताभ को फसाया. कांग्रेस  और गाँधी परिवार किसी को कुछ नहीं दे सकता. सचिन को भी अमिताभ

सरकार की यह कैसी लाचारी

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  गृह मंत्री पी चिदंबरम प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं और उनके पिछलग्गू बने मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल गृहमंत्री. पी चिदंबरम ने अपनी मंशा में कामयाब होने की खातिर ज़रिया बनाया है देश की ख़ु़फिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी को. गृह मंत्री पी चिदंबरम प्रधानमंत्री बनने को इस क़दर उतावले हैं कि उन्हें न तो अपनी पार्टी, न सरकार की परवाह है और न देश की आंतरिक सुरक्षा की. आईबी के कुछ उच्चाधिकारियों और डिफेंस इंटेलिजेंस के कुछ तेज़ तर्रार अधिकारियों का चक्रव्यूह बनाकर पी चिदंबरम ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, रक्षा मंत्री ए के एंटोनी, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी समेत रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय के उन वरिष्ठ नौकरशाहों पर शिकंजा कस रखा है, जो उनके प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़ा बन सकते हैं. गृह मंत्रालय ने आईबी और डिफेंस इंटेलिजेंस के कुछ चुनिंदा अधिकारियों की मा़र्फत इन सभी के फोन टैप कराए हैं, जो अभी भी बदस्तूर जारी है. देश की सरहद पर दुश्मनों की टोह लेने वाले उपकरण ऑफ एयर इंट

पपीता - त्वचा और उदर की समस्याओं लिए अद्भुत फल.

पपीता  -   त्वचा और उदर की समस्याओं के लिए अद्भुत फल.  पपीता एक स्वादिष्ट होने के साथ औषधीय  गुणों से भरपूर है। नियमित सेवन से   विटामिन - ए और विटामिन सी प्राप्त होती है , जो अंधेपन से बचाती है।  स्वास्थ्य की  दृष्टि से  भी पपीते का  महत्व   काफी   है , यह सुपाच्य होता है। पेट में गैस बनने से रोकता है। कब्ज का दुश्मन है और स्वास्थ्य व सौंदर्यवर्धक है।    इसके    पपाइन नामक एंजाइम से भोजन पचाने में मदद मिलती है। यह स्थौल्य भी को दूर करने में सहायक है .              पपीते के सेवन से पाचनतंत्र ठीक होता है। पपीते का रस अरूचि , अनिद्रा ( नींद का न आना ), सिर दर्द , कब्ज व आंवदस्त आदि रोगों को ठीक करता है। रस के सेवन करने से खट्टी डकारें बंद हो जाती है। पपीता पेट रोग , हृदय रोग , आंतों की कमजोरी आदि को दूर करता है। पके या कच्चे पपीते की सब्जी बनाकर खाना पेट के लिए लाभकारी होता है।       पपीते के पत्तों के उपयोग से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है और हृदय की ध