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उम्मीद

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जब तिमिर निशा का घिरता था, हर  याद  सिमट कर  आती  थी. हरियाली  से  बाग भरा हो, आँखों  में  स्वप्न  समाई थी . वो  वेग  पवन  का पश्चिम से , तपते  सिकता  तूफानों में . लगे उजड़ने  एक  एक कर , पुष्प  उपवन की  डाली से . दुर्दिन  का दृश्य  बिखर गया, सदियों  की बहारे रूठ  गयी. यह देख कर दिल जो टूट गया, नेत्रों से अश्रु  प्रवाह  चला . शायद   दिल की ठंढक पाकर ,  सोचा फिर कोई फूल  खिले. था धैर्य इन्ही उम्मीदों से, पर पीड़ा के शूल मिले.                             उत्तम १५.६.१९...