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देखने दो तुम

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             ग़ज़ल देखने दो तुम गुजरे कल की कुछ  तस्वीरें  बच्चों को. लिखने दो अपने लफ्जों में फिर तफ़सीरे बच्चों को. सुन लेना संजीदा होके कल शव देखे ख्वाबों को . लेकिन मत बतलाना उनकी तुम ताबीरें बच्चो को. दादा परदादा के कच्चे चिट्ठे जिनमें लिक्खे हो. हरगिज़ मत पढ़ने देना तुम वह तहरीरें बच्चो को. आज यह कैसा रोना धोना यह कैसा पछतावा है. छीन के कलम किताबे तुमने दी शमशीरें बच्चों को. कैदे कफ़स में जिनको पहनकर तुमने उम्र गंवाई है. कभी विरासत में मत देना वह जंजीरें बच्चों को.

सत्व समर्पण

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              सत्व समर्पण  विरह क्या सींचा नही था     तिनके तिनके जलते तन         उलट पलट कर रहा सेकता               भावों से भींगे निज मन को। नीरवता बन नागिन डसती थी        यादों   की   धुधली   परछाई              इच्छाधारी नाग सा नाचू                 पर छलने की कला न आई . ताक रहा निस रैन चाँद मैं        दे दे श्राप सदा छिपने की               चाँद मुझे तड़पा तड़पा कर                      बांधा बनता रहा मिलन की. शर्माता सम्पूर्ण जगत है      देख तेरी छलकी गंगोत्री          भिक्षुक मन अब भोज बना है                दिल दीपक में प्रीती की ज्योति .   यू  पी  सिंह  12.10.92