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अन्ना पर सवाल किस हद तक ?

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अन्ना पर सवाल किस हद तक ? समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाये किसी ने मिटाए. किसी ने लिखी आंसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी.              सवाल उठाना अच्छी बात पर सवाल प्रमाणिक हो बहुत अच्छी बात होती . एक बात से पूरा राष्ट्र सहमत है की अन्ना को PT टीचर होना चाहिए . हमने स्कूल में देखा स्पोर्ट मैन्स स्पिरिट , स्वास्थ्य और अनुशासन सिखाने और पालन कराने का दायित्त्व और धर्म उसी टीचर होता है. इस देश में कुछ लोग निरंकुश, बीमार है, स्पोर्ट मैन्स स्पिरिट के विपरीत दम्भी , अहंकारी और विलासी हो गए है . आज वास्तव में अन्ना जैसे चरित्र की जरुरत है. 70 लाख के सौचालय से न वह सोच आ सकता है न वह स्वास्थ्य जो 70 साल की अवस्था में एक चारपाई, एक बिस्तर, एक थाली एक कटोरी और एक गिलास पर जीवन बसर करने से आता है. आज जिसके नियत और नेतृत्व पर हम प्रश्न उठा रहे है. दिग्विजय सिंह ने उन्हें MP में advisar बनाया था . भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया. मुझे लगता है आपकी बातों में दम है संभव है भविष्य में गिनीज बुक वाले स्वयं संज्ञान ले लेंगे.  आज  कांग्रेस और पूरी सिया

क्या अन्ना आंदोलन बीच सड़क पर खड़ा है ?

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क्या अन्ना आंदोलन बीच सड़क पर खड़ा है ?  एक बार सरदार प्रताप सिंह कैरो देवीलाल के साथ दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे थे. एक कुत्ता बीच में आ गया. कुत्ते की मौत हो गई. सरदार कैरो ने थोड़ी दूर जाकर गाड़ी रुकवाई.  देवीलाल जी से  उन्होंने पूछा, बताओ कुत्ता क्यों मरा? का़फी सोचने के बाद देवीलाल ने कहा कि कुत्ते तो मरते रहते हैं, यूं ही मर गया होगा. सरदार प्रताप सिंह कैरो ने फिर पूछा, बताओ कुत्ता क्यों मरा? देवीलाल जी खामोश रहे, फिर कहा कि आप ही बताइये. तब सरदार प्रताप सिंह कैरो ने देवीलाल से कहा कि यह कुत्ता इसलिए मरा, क्योंकि यह फैसला नहीं कर पाया कि सड़क के इस किनारे जाना है या उस किनारे. फैसला न लेने की वजह से वह बीच में खड़ा रह गया. अगर इसने फैसला कर लिया होता तो सड़क के इस किनारे या उस किनारे चला गया होता और बच जाता. फैसला नहीं लेने की वजह से यह कुत्ता मारा गया.          आन्दोलन के पहले से ही स्पष्ट था कि  सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कठोर लोकपाल के पक्ष में  नहीं है  फिर भी अन्ना ने कई चिट्ठियां लिखी . कोई नतीजा नही निकला निकलना भी नही था क्योकि सरकार  अपनी जिद्द पर अड़ी थी