अन्ना आंदोलन के बाद उपजा अवसर




                अन्ना हजारे द्वारा राजनीतिक विकल्प देने की घोषणा की कुछ लोगों ने स्वागत करते हुए उन्हें राजनीतिक सुधार प्रक्रिया  के रूप में देखा, तो कुछ लोग यैसे भी है जो इस कदम को आत्मघाती मानते हैं। लेकिन  टीम अन्ना ने बहुत कुछ हासिल किया है, जिसके लिए वे बधाई  और सम्मान के हकदार हैं। तो  साथ ही बहुत कुछ दाव पर भी लगा दिया है।  संभव है  उनसे भी गलतियां  होगी . जनता का समर्थन मिलना एक बात है और उसे बरकरार रख पाना दूसरी बात। आदर्शवादी होना अच्छी  बात है , लेकिन आपको सौदेबाजी करना भी आना चाहिए।


                    सच्चे नेताओं के लिए गलतियां भी सबक होती हैं। यदि अन्ना और उनके सहयोगी इसी सोच व नजरिए के साथ चलते हैं तो आगे भी अपनी छाप छोड़ेंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते तो लड़खड़ा जाएंगे, भले ही उनकी मंशा नेक हो। अलबत्ता टीम अन्ना की नजदीकी अनुपलब्धियों से एक राजनीतिक अवसर पैदा हुआ है। बार-बार अपनी भूमि और भूमिका खो चुकी  भाजपा चाहे तो इसका  सबसे अधिक फायदा उठा सकती है। वैसे लाभ  तो  कांग्रेस भी लाभ ले सकती थी साहसिक कदम उठा कर, कांग्रेस के पास अवसर भी, बहाना भी है अन्ना को दिए  गए बचन का, सत्ता भी है। कांग्रेस का शासन का लम्बा  इतिहास और अनुभव है   हमारे  जैसे  लोग इस पार्टी से उम्मीद करते थे परिपक्क्वता का, राजनैतिक दूरदर्शिता का. लेकिन पार्टी के व्यवहार से लगा  कांग्रेस  अब पार्टी  कम हताशों और दम्भियों की  भीड़  है। श्रृंगालों का झुण्ड है एक आवाज पर सबकी  हूआं  हूआं .  न विवेक, न विवेचना,  न व्याख्या और न ही वार्तालाप। लोकतंत्र की फसल लूटने वालों  ( परिश्रम से काटनेवाले  नही ) ने  संवादहीनता से लोकतान्त्रिक मानस  पर कुठाराघात किया। येसा आघात जो कभी भी  जनतंत्र के सामने कुटिल सफलता का उदाहरण बन खड़ाहोता रहेगा। भाजपाकेपास  अनायास लाभ का अवसर था पर  संसद की सर्वोच्चता के ढकोसले में  पकी पकाई हांड़ी हाथ से सरका दी। क्या अच्छे कानून की मांग के  लिए  कभी  भी सड़कों पर आन्दोलन नही हुए ? क्या भाजपा ने कभी किसी कानून के लिए  या किसी कानून की   खिलाफत में सड़कों पर आन्दोलन नही किया ? क्या वामपंथी पार्टियाँ , ट्रेड यूनियनों ने  मजदूरों के हित  के  लिए सड़कों पर आन्दोलन नही किया ?  ये राजनेता और राजनैतिक दल क्या यह कहना  चाहते ही कि  संसद  हो सड़क  आन्दोलन का हक इनका ही है।  सडक हो  या संसद इनकी ही कृपा पर चलेगा। जे पी  की आन्दोलन  की पैदाइश बतानेवाले और गर्व करनेवाले क्यों भूल जाते है उस समय यही लोग सडक से  संसद को  चुनौती दे रहे थे। तब ये लोकत्रंत के सेक्योरिटी गार्ड उन्हें चुनाव लड़कर व्यवस्था बदलने की सलाह  क्यों नही दिए। कही जनता ने इनके तर्कों का सही निहितार्थ निकाल लिया तो यह न राजनीति , न राजनेताओं और न ही जनतंत्र के लिए शुभ होगा।
                      
     राजनीतिक पार्टियों को  अन्ना आन्दोलन  की येसी परिणति पर खुश होने के बजाय मौजूदा जन भावनाओं को समझते और उसके साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह समझना  है कि अन्ना कहां से चले थे और कहां पहुंच गए।  भ्रष्टाचार तो हमारे साथ नेहरु के साथ ही चलता आया है पर इतना बड़ा जनसमर्थन अन्ना को उतने ही विशालतम घोटालों के बाद ही मिलना शुरू हुआ । हम थोड़ा-बहुत भ्रष्टाचार बर्दाश्त करते रहे हैं। पर हमें गुस्सा तब आया , जब हमारे सामने खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार किया गया . राष्ट्रमंडल, २जी स्पेक्ट्रम, आदर्श, कोयला घोटाले सत्ता के दुरुपयोग का निर्लज्ज उदाहरण हैं। इस मामले में सरकार सरकार और घोटालों के आरोपियों के चेहरों पर अहंकार और  बेशर्म मुस्कान ने लोगों के गुस्से को भड़का दिया। जनता हर व्यक्ति के पीछे खड़ी  होती है या हो सकती है पर अन्ना में उन्हें ऐसे व्यक्ति की झलक नजर आई, जो इस मामले में कुछ कर सकता था। मीडिया भी उनके पीछे आया और अन्ना हजारे व उनकी टीम के लोग रातोंरात स्टार एक्टिविस्ट बन गए।  सरकार बातचीत के लिए आगे आई, जिससे अन्ना कद काफी बड़ा हो गया , यही उचित  समय था, जब टीम अन्ना बातचीत को किसी ठोस नतीजे पर पहुचा सकती थी  सरकार की भी कुछ साख बच जाती ।

          देश के आम लोग सिर्फ भ्रष्टाचार से पीड़ित  नहीं है , बल्कि बेहतर नौकरी, शिक्षा, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं भी चाहते हैं। अन्ना के आन्दोलन से लोगों ने लोकपाल को जादुई छड़ी मानकर  सभी  सपनों को देखना शुरू कर दिया . ऐसे परिदृश्य लोगों को निराशा ही हाथ लगनी थी,   अचानक अनशन को वापस लेने और राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा से लोग दिग्भ्रमित है आशान्वित कम सशंकित ज्यादा है।   यही वर्तमान की  निराशा एक राजनीतिक अवसर भी हो सकता  है।  जैसे लोगों को यह लगता है कि अन्ना के दमन के लिए कांग्रेस दोषी है  तो लोग 2014 में कांग्रेस के खिलाफ इस गुस्से का इजहार करेंगे। भाजपा इसे अपने पक्ष में कर सकती है।  भाजपा भी कोई पतित पावन गंगा नही है, उसमे भी  भ्रष्टाचारी तत्व हैं, जिनकी सफाई के लिए उसे समय रहते रास्ता निकालना होगा। भाजपा को उम्मीदो  को जिन्दा रखना होगा जिन्हें अन्ना ने जगाया है।   कोई पार्टी अन्ना के इस क्षीण हो चुके आंदोलन से उपजे अवसर को  तभी भुना सकती है जब भ्रष्टाचार से लड़ने का मजबूत इरादा दिखाए,  इससे न सिर्फ उसे बल्कि देश को भी फायदा हो सकता है।  टीम अन्ना भी तो यही चाहती है  कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक राजनीतिक विकल्प तैयार किया जाए। तभी सही मायने में  भारत (हम भारत के लोगों) की जीत  होगी।

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