उम्मीद










जब तिमिर निशा का घिरता था,
हर  याद  सिमट कर  आती  थी.
हरियाली  से  बाग भरा हो,
आँखों  में  स्वप्न  समाई थी .
वो  वेग  पवन  का पश्चिम से ,
तपते  सिकता  तूफानों में .
लगे उजड़ने  एक  एक कर ,
पुष्प  उपवन की  डाली से .
दुर्दिन  का दृश्य  बिखर गया,
सदियों  की बहारे रूठ  गयी.
यह देख कर दिल जो टूट गया,
नेत्रों से अश्रु  प्रवाह  चला .
शायद   दिल की ठंढक पाकर ,
 सोचा फिर कोई फूल  खिले.
था धैर्य इन्ही उम्मीदों से,
पर पीड़ा के शूल मिले.
                           उत्तम १५.६.१९८९

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