मत करो मेरे लिए ऐसा बंद

मत करो मेरे लिए ऐसा बंद
एक बार फिर भारत बंद है। विचारणीय प्रश्न यह कि "बंद महंगाई के खिलाफ है या महंगाई कि शिकार जनता के खिलाफ"। क्या कोई राजनीतिक पार्टी बंद करा कर अपनी मांग  मनवा पाई है या सचमुच जन सरोकारों से जुड़े मांगो को मनवाना चाहती है?  बंद आम जनता के नाम पर आयोजित किए जाते हैं। पर बंद के दिन जनता पर तिहरी मार पड़ती है। उस दिन काम-काज का नुकसान तो होता ही है, बंद समर्थकों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई का बोझ भी उसके ऊपर पड़ जाता है। और, जिस समस्‍या से निजात दिलाने के लिए बंद किया जाता है, अगले दिन वह समस्‍या भी जस की तस बनी रहती है। इतनी बड़ी संख्या में राजनैतिक दल और राजनेता अगर चाहते है कि आम आदमी को मूलभूत सामग्री और सुविधाएँ सुलभ और सुनिश्चित हो तो उन्हें इस तरह सडक पर उतरकर सार्वजानिक संपत्ति को क्षति पहुचने और सामान्य जन जीवन को बंधक के बदले , संसद और सरकार का घेराव करना चाहिए, मंत्रियों और मंत्रालय के रास्ते रोकने चाहिए , वो भी तब तक जब तक मांगे न मानी जाये.  लोग समय पर दफ्तर नहीं पहुंच सके, दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल सका, मरीजों को अस्‍पताल पहुंचने में मुश्किल हो रही है, रेल यात्री जहां-तहां फंसे हुए हैं..... जनता इस तरह के बंद के पक्ष में नहीं है।    इस तरह के बंद से किसका फायदा हो रहा है और यह किसके लिए किया जा रहा है और क्‍या विरोध का यह तरीका जायज है? करुणानिधि , माया और मुलायम क्या चाहते है कि सरकार जन विरोधी काम न करे ? अगर चाहते तो इनकी उपेक्षा के बाद एक क्षण भी सरकार नही टिक पाती . मतलब साफ है ऐ सत्ताकांक्षी विरोध के लिए विरोध का ड्रामा कर रहे है .



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