अन्ना पर सवाल किस हद तक ?

अन्ना पर सवाल किस हद तक ?
समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाये किसी ने मिटाए.
किसी ने लिखी आंसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी.
             सवाल उठाना अच्छी बात पर सवाल प्रमाणिक हो बहुत अच्छी बात होती . एक बात से पूरा राष्ट्र सहमत है की अन्ना को PT टीचर होना चाहिए . हमने स्कूल में देखा स्पोर्ट मैन्स स्पिरिट , स्वास्थ्य और अनुशासन सिखाने और पालन कराने का दायित्त्व और धर्म उसी टीचर होता है. इस देश में कुछ लोग निरंकुश, बीमार है, स्पोर्ट मैन्स स्पिरिट के विपरीत दम्भी , अहंकारी और विलासी हो गए है . आज वास्तव में अन्ना जैसे चरित्र की जरुरत है. 70 लाख के सौचालय से न वह सोच आ सकता है न वह स्वास्थ्य जो 70 साल की अवस्था में एक चारपाई, एक बिस्तर, एक थाली एक कटोरी और एक गिलास पर जीवन बसर करने से आता है. आज जिसके नियत और नेतृत्व पर हम प्रश्न उठा रहे है. दिग्विजय सिंह ने उन्हें MP में advisar बनाया था . भारत सरकार ने पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया. मुझे लगता है आपकी बातों में दम है संभव है भविष्य में गिनीज बुक वाले स्वयं संज्ञान ले लेंगे.  आज  कांग्रेस और पूरी सियासी बिरादरी आरोप गढ़ रहे है,   सत्ता का दुरुपयोग कर रहे है. फिर भी कुछ मिला नहीं परिणामतः मनीष तिवारी को माफ़ी मंगनी पड़ी.वैसे अन्ना दिग्विजय सिंह की बातों को गंभीरता से लेते है शायद २०१४ में ballet पालिटिक्स के विकल्प को नकार नहीं रहे है. आन्दोलन और परिवर्तन कभी मुंडों की मोहताज नहीं रही( अकेले चेग्वेरा ने क्यूबा का मुश्तकबिल बदल दिया) बदलाव मतों से  आते है मुंडो से नही  . भ्रष्टाचार और सत्ता के  शोषण की जड़ें बड़ी मजबूती से गहराई तक पैबस्त हो चुकी है , वैसे भी नीव जीतनी मजबूत हो उसे उखाड़ने के लिए उससे ज्यादा प्रहार और प्रहर की जरुरत होगी. कांग्रेसियों के अन्दर सहनशीलता का आभाव सा दिखता . विभिन्न एजेंसियों और घाना की सरकार के हवाले से बोले गए सच से महामहिम की महिमा खंडित हो गयी, पर इंदिरा के आदेश पर झाड़ू लगाने को तैयार रहने वाले जैल सिंह जी के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी करते समय पद की गरिमा का क्या हुआ था ? आजादी के बाद से अब तक राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय मिडिया व मंचो पर बार बार लोकतंत्र को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लताड़ा गया इस देश के PM सस्थागत रूप से कोई भी निर्णय नहीं करता. सत्ता की ताकत गैर संवैधानिक संस्था के हाथों संचालित होता है. इसके लिए सोनिया के नाम को जरुर गिनीज बुक में जरुर दर्ज होना चाहिए, शायद यही आधार  डॉ मनमोहन सिंह को भी गिनीज बुक में इंट्री दिला दे. अंततः मै स्पस्ट कर अन्ना नाम नहीं आवश्यकता है विभिन्न काल खण्डों में अन्ना भिन्न भिन्न नामों से आते रहे है वक्त की मांग के अनुसार उनकी चरित्र और भूमिका अलग रही . आज अन्ना है , कल जयप्रकाश नारायण थे, परसों महात्मा गाँधी. तुलना नहीं हो सकती पर श्रंखला में आते ही है.

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