खेले ब्लैक मनी , ब्लैक मनी

तब  और ----------------------------------------------------------------------------------------

अब-------------------------------------------------------------------------------------------------
अगर यह सच है -
" वित् मंत्री भारत सरकार अरुण जेटली ने कहा है कि 1995 के किसी कानून या समझौते के कारण हम काला धन वालों के नाम नही बतला सकते" ।
तो 6 साल तक अटल बिहारी वाजपयी की बीजेपी सरकार थी तब याद नही आया कानून या समझौता बदलना है । 4 महीने से ज्यादा " साहेब " की सरकार को "मित्रयो , भाईयो बहेनो " करते हुए फिर भी कुछ नही किया । अम्बानी खानदान के साथ ही कितने संघी हैं जिनको बचाने का जुगाड़ आप कर रहे हैं ।
विपक्ष में रहते हुए सालों साल आरोप लगते रहे UPA पर,  कि सरकार नाम इसलिए छिपा रही है की कांग्रेसी नाम है. क्या मोदी जी और उनकी टीम अनपढ़ और बुद्धिहीन थी की उस समझौते को पढ़ नहीं पाये.  आज उसी की आड़ लेकर नाम छुपाये जा रहे है, क्या देश की जनता यह नहीं मान ले की bjp वालो का नाम है इसलिए नहीं बताया जा रहा है ? मोदी जी 5 - 5 सौ रुपये के आधे अधूरे खाते  खुलवाने के चककर में क्यों हो आपने तो कहा था काला  धन आएगा तो हर देशवाशी के हिस्से में 20 - 20 लाख आएंगे तो क्यों नहीं सब फुटकर टोटके छोड़ इसी में जुट जाते है ? चुनावो में आपने जिस तरह से जनता को झूठे भाषण, असंभव वादे , निराधार तथ्यों से भ्रमित किया उसके लिए आप कांग्रेस के तो मुजरिम है ही क्या उनसे माफ़ी नहीं मांगनी  चाहिए की हम आपसे भी ज्यादा निकम्मे है ? उससे ज्यादा भारत की महान, सरल, ईमानदार और भोली भाली जनता से माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए जिसके विश्वास की निर्मम हत्या कर दी गयी और स्वप्निल संसार का मात्र 4 महीने के अंदर दाह  संस्कार कर दिया गया.  UPA शासन में जनता कहती थी इससे अच्छी अंग्रेज सरकार थी, धीरे धीरे क्या जनता उसी तर्ज पर कहने लगी है मोदी जी  से अच्छी UPA सरकार थी. विश्वसनीयता का संकट तो मोदीजी पर तो पहले से ही था पर पूंजीपतियों के हित में हो रहे फैसले से 'नीयत' पर भी सवाल उठ खड़े हो गए .    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बचपन

पपीता - फरिश्तों का फल