गाँधी के आधुनिक बन्दर

तीन बन्दर गाँधी के ,
चबूतरे पर बैठे हाथ धरे रहते सदा -
आंख, कान और मुँह पर ।
बुरा मत देखो , बुरा मत सुनो ,
बुरा मत कहों - किसी को ।
बंदर ही क्यों सोचा ?
उस्तरा उल्टा नाक कटी
बहुत उपहास हुआ - बंदरों का ।
जानबूझ कर बंदरों ने स्वांग किया
हम क्या जाने बन्दर नकलची नही ,
रात होते बन्दर हटाते हाथ,
देख सुन समझ कर लाते रोटी
फिर सुबह अंधे बहरे  गूंगे ।
बंदरों ने बदला लिया हमे बन्दर बनाया ।
तब से कर्महीन आदमी
दोनों हाथे बांधे दिमाग बंद किये
बंदरों से आगे बढ़ गया ।
                                       उत्तम ०१/१२/९१

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