युद्ध : हार या या जीत

                       १४ साल पहले जो हुआ विशेषतः भारत की दृष्टि से उस पर गर्व किया जा सकता है, किया भी जाना चाहिए. इसके विपरीत अगर पाकिस्तान के नजरिये से समझने की कोशिश करे तो अत्यंत शर्म और गहरी टीस का सबब रहा होगा . येसी घटनाओ से चाहे गर्व हो या शर्म थोपी हुयी  होती है . सरहद के इस पार या उस पार किसी ने भी नहीं  चुना था जंग. परिणाम उलट भी हो सकते थे. क्या सोचने की जरुरत नहीं चंद अहमक, क्रूर , कायर और सत्तान्धा राजनेताओ के गरूर और कुंठा के परिणाम को लाखो - करोंड़ों जिंदगियां स्वाहा हो जाती है, बेघर और अनाथ हो जाती है. हाथ क्या आता है ? झंडा फहरा कर जिंदाबाद करने के आलावा कुछ भी नहीं. क्या इससे विजयी सेना के शहीदों के परिवारों में हर्षित ख़ुशी होगी ? अनाथ बच्चे और विधवा विरान्गानों का नासूर पदको के पीछे से टीसता नहीं होगा ? युद्ध में विजयी कोई हो हारता सिर्फ मानवता है . सोचना तो पड़ेगा !!!!!!!!!!!  

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