गंभीरता से सोचने की आवश्यकता नहीं ?

पिछले कुछ दिनो ने भारतीय जन मानस को बहुत आहत किया है, खासकर मतदातों उसमे भी युवको को 
जिन्हें हमेशा अपने नेताओं से विकासोन्मुखी और आदर्श नेतृत्व की अपेक्षा रहती है  जब कभीकर्नाटक 
या गुजरात विधानसभा से खबरे आती है की हमारे प्रतिनिधियों का आचरण अनुकरणीय नहीं था या सीधे 
सीधे कहा जा सकता है शर्मनाक लगा  कभी अभिषेक मनु सिंघवी तो कभी समाजवादी (पार्टी ) नेता
 चौधरी बाबु यादव या कभी BJP नेता और मंत्री राघव जी  प्रश्न यह नहीं की कौन और किस पार्टी से है
 बल्कि आखिर हमारे राजनीती और राजनेताओं का नैतिक और चारित्रिक पतन इतना क्योंहोता जा रहा है  
क्या हम भी कही जिम्मेदार तो नहीं है ? कही सत्ता की ताकत उन्हें निरंकुश तो नहीं बना रहा है  क्या  साधन  और शिकार उन्हें बिना रिस्क आसानी से मिल जाते है ? क्या प्रकाश में आने केबाद उनका कुछ नहीं बिगड़ने
 का आश्वासन है ? यह महत्वपूर्ण प्रश्न आम आदमी के सामने बहुत बड़ा है क्योकि इनकी इस विकृति का
शिकार हमारे आम आदमी निम्नवर्गीय गरीब और बेरोजगार तबका ही होता है. हमारे प्रतिनिधि  नीति  नियंताओं में  यौन कुंठा कही  हमारी निष्क्रियता  का नतीजा तो  नहीं ? कही इनके मनो- दैहिक  दिवालियेपन  का  नतीजा  तो नहीं ?  हम विगत में अपना प्रभावी विरोध नहीं  दर्ज करा  पाए ? क्या हमारा  शासक वर्गकानन  कानून(जंगल राज ) की तरफ तो नहीं  जा रहा है  ?  क्या हमें गंभीरता  से सोचने की  आवश्यकता  नहीं ?
 

टिप्पणियाँ

  1. आज की इस हालत के लिए बहुत सारे कारक हैं ! हम भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं ! हमारी निसक्रियता बहुत सारे वजहों से हैं ! आज़ादी के बाद हमारे नेताओं ने बस किस तरह से वोटबॅंक को बनाए रखा जाए इसके उपर ही ध्यान दिया है! कभी लोगों को धर्म कभी जाती कभी भाषा कभी क्षेत्र को लेकर बस लड़ाया है! हमारी शिक्षा पद्धति पूरी तरह से व्यावसायिक हो गयी है! जिसमे समाज और राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्यों के बारे मे कुछ मिलता नही है ! लोगों के सामने इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया! आज़ादी के लिए जान तक लूटा देने वाले बस एक पॅरग्रॅफ में रह गये और कुछ न करने वाले देश के असली नायक बन गये ! आज बच्चा स्कूल दो साल की उमर में जाना शुरू कर देता है लेकिन सामान्य शिष्टाचार नैतिकता वो पूरी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद भी नही सिख पाता है ! अमीर वर्ग बस अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा भोग विलास के समान एकत्रित करने में व्यस्त है! और ग़रीब वर्ग को रोज़ी रोटी जुटाने से फ़ुर्सत नही है! यूवा वर्ग को गर्लफ्रेंड, आई पी एल से फ़ुर्सत नही है ! और वाह री हमारी महान मीडीया ! हमारी महान मीडीया ने जिस तरह से लोगों का ध्यान असल मुद्दों से हटाया हुआ है वो कबीले तारीफ है ! और हमारी मीडीया किसी भी ज़ीरो को हीरो बनाने में बहुत ही काबिल है ! ऐसे में लोगों की अपनी सोच कुछ रही ही नही! लोगों को अपनी क़ाबलियत से कुछ हासिल करने के बजाय भीक माँगना सिखाया जा रहा है ! लोग भीड़ बन गये है और नेता उन्हे बहुत शातिर तरीके से वोट बॅंक की तरह उपयोग कर रहें हैं!

    माफी चाहता हूँ बहुत बड़ा हो गया लेकिन बहुत सारी बातें रह गयी !

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बचपन

पपीता - फरिश्तों का फल