संयुक्त परिवार

संयुक्त परिवार की घटनाएँ बीते दिनों की बात हो गयी जब माँ बाप अपने बेटों बेटिओं, पोते पोतियों के साथ एक ही छत के नीचे रहा करते थे. यह संयुक्त परिवार की संस्कृति भारत में ब्रिटिश कल्चर के अतिक्रमण तक प्रभावी रहा. सिंगल  फैमिली कल्चर हमने अपने यहाँ अंग्रेजों से उधार में लिया. दुनिया में कुछ  भी येसा नहीं है जिसका सिर्फ लाभ हो और  हानि नही।

          संयुक्त परिवार के लिए , परिवार चाहे बड़ा हो चाहे छोटा इसका सबसे बड़ा वरदान  परिवार के सभी सदस्यों के बीच शसक्त एकता की भावना होती है। हर एक सदस्य अपने आप को परिवार अंग  समझता है  अलग  नही। बच्चे पूरे परिवार के होते है सिर्फ माँ बाप के नही। यैसे परिवारों में यह कदापि संभव नहीं था की एक भाई के बच्चे पब्लिक स्कुल में और दुसरे के सरकारी स्कुल में,  कम से कम एक परिवार में किसी तरह की विषमता नही थी। सामान शिक्षा, समान  स्वास्थ्य और एक संस्कार मिलते थे। जटिलता वहां बहुतायत में दिखती थी जहाँ परिवार के प्रमुख सदस्यों की उपार्जन क्षमता अधिक होती थी वहां बच्चे नहीं तो माताएं अपने आप को उस व्यवस्था के शिकार के रूप में महसूस करते थे। किन्तु तब के संस्कार और system  में आपसी समझ,  सहनशीलता  और सहयोग की भावना इतनी दृढ़ थी कि  परिवार का कोई एक भी सदस्य व्यवस्था पर आपत्ति उठाने की साहस नहीं कर पता था। यह भय के  कारण रहा हो सम्मान या कि स्वार्थ.  संयुक्त परिवार में किसी एक व्यक्ति को अकेला न रोने के लिए छोड़ा जाता है / था ने अकेले मरने के लिए जिससे त्रासदी की भयावहता  को न्यूनतम किया जा सकता है ।  कभी कभी यह भी कहते सुना जाता था कि " one man’s food is another man’s poison" फिर संयुक्त परिवार व्यवस्था में बहुत कुछ फायदे है ।
बाबजूद इसके, परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहते थे, एक दुसरे की परवाह करते थे और परिवार के सभी बच्चे एक साथ एक जैसे पढ़ते थे , एक जैसे बढ़ते थे ।  परिवार के सभी बच्चे बचपन से एक दुसरे को समझाते थे और कभी भी चचेरे, तहेरे भाई बहनों और सगे भाई बहनों में कोई फ़र्क नहीं महसूस होता था ।  घर की समस्याए, घर की चिंता, घर का भार और घर की जिम्मेदारियां परिवार के सभी पुरुष और महिलाएं मिल कर उठाते थे , अकेले नहीं ।  संयुक्त परिवारों में बड़े बुजुर्गों की हिस्सेदारी सबसे अहम होती थी, वे कभी अकेले नहीं पड़ते होते । परिवार के सभी सदस्यों से उनको पूरा मान सम्मान मिलाता था । जीवन के ढलते शाम में भी वे हमारे बुजुर्ग कभी बोझ नहीं होते थे । एक तरह से उन्हें अपने जीवन की कमाई  का सबसे खुबसूरत रिटर्न गिफ्ट मिलाता है । मै  महसूस करता हूँ की संयुक्त परिवारों की सबसे ज्यादा जरुरत और आवश्यकता या तो बुजुर्गो को होती है या बच्चों को । इससे उलट एकल परिवारों का सबसे बड़ा अभिशाप उन्ही बुजुर्गों और बच्चों को ही भुगतना पड़ता है । वे ही आज उपेक्षित है । 



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